
बालक की ईमानदारी | Best Motivational Story in Hindi

Best Motivational Story in Hindi
इस प्रेरणादायक कहानी है नंदू नाम के एक छोटे से बालक की और इस कहानी का का नाम है “बालक की ईमानदारी | Best Motivational Story in Hindi” उम्मीद है आपको यह कहानी जरूर पसंद आएगी।
बालक की ईमानदारी
Best Motivational Story in Hindi
एक छोटे से गाँव में नंदू नाम का एक बालक अपने निर्धन माता-पिता के साथ रहता था। एक दिन दो भाई अपनी फसल शहर में बेचकर ट्रैकटर से अपने गाँव आ रहे थे। फसल बेचकर जो पैसा मिला वह उन्होंने एक थैले में रख लिया था। अचानक एक गड्ढा आ गया और ट्रकटर उछला और थैली निचे गिर गई जिसे दोनों भाई देख नहीं पाए और सीधे चले गए।
बालक नंदू खेलकूद कर रात को अँधेरे में अपने घर जा रहा था। अचानक उसका पर किसी वस्तु से टकरा गया। उसने देखा तो पता चला कि किसी की थैली है। जब नंदू ने थैली खोलकर देखा तो उसमे नोट भरे हुए थे। वह हैरान हो गया और सोचने लगा कि पता नहीं किसकी थैली होगी। उसने सोचा कि अगर वह थैली यही छोड़ गया तो कोई और इसे उठा ले जाएगा। वह मन ही मन सोचने लगा कि जिसकी यह थैली है उसे कितना दुख और कष्ट हो रहा होगा।
हालाँकि लड़का उम्र से छोटा था और निर्धन माँ-बाप का था लेकिन उसमें सूझबूझ काफी अच्छी थी। वह थैली को उठाकर अपने घर ले आया। उसने थैली को झोपडी में छुपाकर रख दिया फिर वापस आकर उसी रास्ते पर खड़ा हो गया। उसने सोचा कि कोई रोता हुआ आएगा तो पहचान बताने पर उसे थैली दे दूंगा।
इधर थोड़ी देर बाद दोनों भाई घर पहुँचे तो ट्रकटर में थैली नहीं थी। दोनों भाई यह जान निराश होते हुए बहुत दुखी होने लगे। पुरे साल की कमाई थैली में भरी थी। किसी को मिला भी होगा तो बताएगा भी नहीं। शायद अभी वह किसी के हाथ न लगा हो यह सोच दोनों भाई टोर्च लेकर उसी रास्ते पर चले जा रहे थे।
छोटा बालक नंदू उन्हें रास्ते में मिला। उसने उन दोनों से कुछ भी नहीं पूछा लेकिन उसे शंका हुई कि शायद यह थैली इन्ही की ही हो। उसने उनसे पूछा, ‘आप लोग क्या ढूंढ रहे है?” उन्होंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। उसने दोबारा पूछा, “आप दोनों क्या ढूंढ रहे हो?” उन्होंने कहा, “अरे कुछ भी ढूंढ रहे है तू जा तुझे क्या मतलब।”
दोनों आगे बढ़ते जा रहे थे। नंदू उनके पीछे चलने लगा। वह समझ गया था कि नोटों वाली थैली संभवता इन्हीं की ही है। उसने तीसरी बार फिर पूछा तो चिल्लाकर एक भाई ने कहा, “अरे चुप हो जा और हमें अपना काम करने दे। दिमाग को और ख़राब न कर।” अब नंदू को समझ आ गया की वह थैली अवश्य इन्हीं की ही है। उसने फिर पूछा, ‘”आपकी थैली खो गई है क्या?”
दोनों भाई एकदम रुक गए और बोले, “हाँ।” नंदू बोला, “पहले थैली की पहचान बताइए। जब उन्होंने पहचान बताई तो बालक उन्हें अपने घर ले गया। टोकरी में रखी थैली उन दोनों भाइयों को सौंप दी। दोनों भाइयों की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। नंदू की ईमानदारी पर दोनों बड़े हैरान थे। उन्होंने इनाम के तौर पर कुछ रूपए देने चाहे पर नंदू ने मना कर दिया और बोला, “यह तो मेरा कर्तव्य था।”
दूसरे दिन दोनों भाई नंदू के स्कूल पहुँच गए। उन्होंने बालक के अध्यापक को यह पूरी घटना सुनाते हुए कहा “हम सब विद्यार्थियों के सामने उस बालक को धन्यवाद देने आए हैं। अध्यापक के नेत्र से आँसू गिरने लगे। उन्होंने बालक की पीठ थपथपाई और पूछा, “बेटा, पैसे से भरे थैले के बारे में अपने माता-पिता को क्यों नहीं बताया।” नंदू बोला, “गुरूजी, मेरे माता-पिता निर्धन हैं। रुपयों को देखकर उनका मन बदल जाता तो हो सकता है रुपयों को देखकर उसे लौटाने नहीं देते और यह दोनों भाई बहुत निराश हो जाते। यह सोच मैंने उन्हें नहीं बताया।
सभी ने नंदू की बड़ी प्रशंसा की। दोनों भाइयों ने उसे कहा, “बेटा धन्यवाद। गरीब होकर भी तुमने ईमानदारी को नहीं छोड़ा।
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