
31 मार्च के बाद क्या ओबीसी और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के ग्राहक ऑनलाइन पैसों का लेन-देन नहीं कर पाएंगे? बैंक ने दिया इसका जवाब
PNB (Punjab National Bank) में विलय होने के बाद क्या 31 मार्च से ओबीसी और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के ग्राहक ऑनलाइन पैसों का लेन-देन नहीं कर पाएंगे? आइए जानें इससे जुड़ी सभी बातें...
1 अप्रैल 2020 से देश के दो बड़े सरकारी बैंकों ऑरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (OBC-Oriental Bank of Commerce) और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (UNI-United Bank of India) का देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक पीएनबी (PNB-Punjab National Bank) में विलय हो चुका है. अब OBC और UNI के ग्राहक PNB के ग्राहक कहलाएंगे. इसीलिए पीएनबी इससे जुड़े सवाले के जवाब दे रहा है.
PNB ने ट्वीट करके बताया है कि बीते कुछ दिनों से खबरें आ रही है 31 मार्च के बाद ओबीसी और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के ग्राहक ऑनलाइन पैसों का लेन-देन नहीं कर पाएंगे. ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. सभी ग्राहक पहले की तरह आसानी से पैसों का लेन-देन कर पाएंगे.
पीएनबी का कहना है कि OBC और UNI के ग्राहकों को ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करने के लिए नए IFSC कोड की जरुरत होगी. इसके लिए वो बैंक से संपर्क कर सकते है.
यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के बारे में जानिए…
19 जुलाई 1969 को राष्ट्रीयकृत किए गए 14 बडे बैंकों में से एक है यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया लिमिटेड. जिसकी स्थापना सन 1950 में चार बैंकों का विलय करने के बाद हुए थी.
ये चार बैंक थे कोमिल्ला बैंकिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (1914), बंगाल सेंट्रल बैंक लिमिटेड (1918), कोमिल्लान यूनियन बैंक लिमिटेड (1922) ओर हुगली बैंक लिमिटेड (1932)
ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के बारे में जानिए
ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स एक सरकारी बैंक है. इसकी स्थापना 19 फरवरी 1943 को लाहौर (अविभाजित भारत ) में हुई थी.
बैंक के संस्थापक और पहले चेयरमैन स्वर्गीय राय बहादुर लाला सोहन लाल थे. स्थापना के चार वर्ष बाद ही भारत का विभाजन यानी भारत और पाकिस्तान के तौर पर दो हिस्से बन गए.
ऐसे में बैंक को पाकिस्तान की सभी शाखाएं बंद करनी पड़ी और हेड ऑफिस लाहौर से शिफ्ट होकर पंजाब के अमृतसर में आ गया. तत्कालीन चेयरमैन स्वर्गीय लाला करम चंद थापर ने सभी जमाकर्ताओं का भी पूरा धन लौटाया जो पाकिस्तान से विदा हो रहे थे.
बैंक ने अपनी स्थापना के बाद कई उतार चढ़ाव देखे. कहा जाता है कि साल 1970-76 में एक समय ऐसा भी आया. जब बैंक के पास मुनाफे के सिर्फ 175 रुपये रह गए. तब बैंक को बंद करने की तैयारी शुरू हो गई.
लेकिन बैंक के कर्मचारी और यूनियन के नेता बैंक मालिकों को समझाने में कामयाब रहे. इसे फिर से मुनाफे की पटरी पर लाया जा सकता है.
इसके बाद बैंक मालिकों ने कर्मचारियों के साथ मिल कर आगे बढ़ने का निश्चय किया. इसके सुखद परिणाम सामने आए और बैंक के प्रदर्शन में खासा सुधार हुआ. यह बैक के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ.15 अप्रैल 1980 को बैंक का राष्ट्रीयकरण हो गया.
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