क्या आयुर्वेदिक इलाज से थाईरॉईड की बीमारी का इलाज संभव है?
थायराइड गर्दन के निचले हिस्से के बीच में तितली के आकार की एक छोटी सी ग्रंथि होती है I यह टी3 और टी4 थायरॉक्सिन हार्मोंन का निर्माण करती है जो कि सांस, ह्रदय गति, पाचन तंत्र और शरीर के तापमान पर सीधा असर करती है। इन हॉर्मोन्स के असंतुलन से हाइपोथायराइड (हॉर्मोन्स की मात्रा कम होना) या हाइपर थाइरोइड (हॉर्मोन्स की मात्रा बढ़ना) की समस्या उत्पन्न होती हैं। पुरूषों के मुकाबले महिलाओं में हाइपोथायराइड अधिक मात्रा में पाया जाता है l
लक्षण
यह एक साइलेंट किलर बीमारी है क्योंकि इसके लक्षण फौरन सामने नहीं आते हैं। हाइपोथायरायडिज्म सबसे ज्यादा देखी जानेवाली थाइरोइड समस्या है । थोडासा काम करने पर भी थकन महसूस होना, वजन बढ़ने लगना, शरीर में हलका दर्द रहना, बाल,त्वचा रूखे होना, कब्ज, अनियमित मासिक धर्म ये लक्षण हाइपोथायरायडिज्म में दिखाई देते है ।
कारण
जीवन शैली में परिवर्तन, शारीरिक और मानसिक तनाव यह हाइपोथाइरोइड के कुछ मुख्य कारण है। थायरॉइड रोग का एक कारण ऑटोइम्यून डिसॉर्डर भी है जिसमें शरीर में मौजूद एंटीबॉडी खुद ही थायरॉयड ग्रंथियों पर हमला कर देती हैं जिसके परिणामस्वरूप ऑटोइम्यून थिओरोडिटिस थायरॉइड ग्रंथि को नष्ट करती है।
आयुर्वेद में थायरॉयड ग्रंथि का कोई प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है। लेकिन गलगंड नामक एक बीमारी का उल्लेख संहिताओं में मिलता है। इसके लक्षण हाइपो थाइरोइड से काफी मिलते है l
यदि हाइपोथायरायडिज्म अनुवांशिक दोषों के कारण या जन्मजात विकृति के कारण होता है, तो ये असाध्य हैं।
कारण के अनुसार हाइपोथायरायडिज्म में विभिन्न स्तरों पर अलग अलग औषधियां इस्तमाल की जाती है :
हाइपोथैलामो पिट्यूटरी स्तर पर: तनावनाशक औषधिया, मेध्य रसायन द्रव्य, नस्य कर्म फायदेमंद हो सकते हैं।
थायरॉयड ग्रंथि के स्तर पर: यहां थायरॉयड उत्तेजक दवाओं की सिफारिश की जाती है।
चयापचय स्तर पर: दीपन, पाचन, तीक्ष्ण, उष्ण, लेखन गुणयुक्त औषधी जो शरीर के चयापचय को बढ़ाती है, उनका इस्तमाल किया जाता है।
ऑटोइम्यून से संबंधित हाइपोथायरायडिज्म के लिए इम्यूनो-मॉड्यूलेटरी औषधिया उपयोगी है l
१. कांचनार
यह हाइपोथाइरोइड के लिए अत्यंत उपयुक्त है I ताज़ा कांचनार की छाल को चावल के पानी के साथ पीसकर शुंठी मिलाकर सेवन करे। यह गोइटर में आनेवाली गले में सूजन को भी कम करता हैl
२. अश्वगंधा :
यह थाइरोइड हॉर्मोन्स को बढ़ता है l तणाव को कम करता है l इम्यूनोमोडुलेटर होने से ऑटो इम्यून हाइपोथायरायडिज्म में यह उपयोगी हो सकती है l
३. सहजन की पत्तियां भी हाइपोथाइरोइड में कारगर साबित हुई है l
४. वरुण में एंटी ट्यूमर प्रॉपर्टी होने के कारण यह थायराइड की अतिरिक्त वृद्धि में लाभकारी हैl
५. गुग्गुलु : यह टी ४, टी ३ हॉर्मोन्स की मात्रा बढ़ाता है l
६. ब्राह्मी : आयुर्वेद की उत्कृष्ठ मेध्य रसायन औषधी है l ब्राह्मी थायराइड को उत्तेजित करती है, उसकी गतिविधि बढ़ाकर टी ४ होर्मोन की मात्रा बढ़ाती है l
इनके अलावा निर्गुण्डी, जलकुम्भी, अपामार्ग, आरग्वध जैसी औषधियां भी थाइरोइड हॉर्मोन्स की मात्रा बढ़ाकर हाइपोथाइरोइड में उपयुक्त साबित हुई है l
१. सहजन के पत्ते, कांचनार, पुनर्नवा इनको समान मात्रा में ले के काढ़ा बनाले। ३० से ५० मिली काढ़ा दिन में एक बार खाली पेट ले।
इन औषधियों से बने कांचनार गुग्गुलु, त्रिफलाद्य गुग्गुलु, पुनर्नवादि कषाय आदि योग मात्रा में लेने से हाइपोथाइरोइड में काफी लाभ होता है l
इनके साथ वमन, विरेचन, नस्य आदि पंचकर्म, शिरोधारा जैसे चिकित्सा कर्म उचित चिकित्सक के परामर्श से लेने चाहिए l
हाइपोथायराइड के लिए पथ्य
खाने में आयोडीन युक्त नमक का इस्तमाल करे l
लहसुन, प्याज, त्रिकटु, सहजन (मोरिंगा), जव, कुलीथ , काकमची, पुराने चावल, जौ, मूंग दाल इनका ज्यादा प्रयोग करे l
यह पाया जाता है कि नारियल का तेल हाइपोथायरायडिज्म में बहुत मदद करता है l
हाइपोथायरायड के लिए अपथ्य (परहेज करना)
दही, भारी भोजन, बहुतायत में नॉनवेज, मछली, दिन की नींद, बहुत मीठा खाना, जंक फ़ूड बंद करना चाहिये I
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