जब भी किसी को अपेंडिक्स संबंधित परेशानी होती है तो चिकित्सक उसका अपेंडिक्स ऑपरेशन कर निकाल ही देते हैं? वह अन्य बीमारियों की तरह इसका इलाज क्यों नहीं करते?
अपेंडिक्स मानव शरीर में एक वेस्टिजीयल ऑर्गन है। इसका कोई कार्य नहीं है। जब इसका कोई फंक्शन ही नहीं तो इसे निकालने में विशेष सोच विचार की जरूरत नहीं। इसका किसी काम का नहीं रहना ही इसे ज्यादातर निकाल देने के निर्णय का इकलौता कारण नहीं।
अपेंडिक्स के सूज जाने को अपेंडिसाइटिस कहते हैं। यह बहुत ही दर्द भरा होता है। अगर इसका समय पर इलाज नहीं हुआ तो यह फट जाता है। अपेंडिक्स फटा तो आंत के कंटेंट पेट में फ़ैल जाएंगे और पेरिटोनाइटिस हो जाएगा। पेरिटोनियन पेट की अंदर की परत को कहते हैं। इसका इलाज कठिन होता है क्योंकि एंटीबायोटिक पर्याप्त मात्रा में पेरिटोनियम तक नहीं पहुंच पाते।
अपेंडिक्स आसानी से सूजन के बाद फट सकता है। कई मामलों में यह डॉक्टर के शल्य क्रिया से निकाले जाने से पहले ही फट चुका होता है। सीटी स्कैन कर इसकी सही स्थिति पता कर लेने से एंटीबॉडी से इलाज करने पर यह ठीक हो सकता है परंतु विलंब करने से इसमें छेद हो जाने का खतरा भी है। मरीज को ज्यादा समय तक दर्द भी झेलना होगा। हो सकता है अभी ठीक हो जाए परंतु कुछ वर्षों बाद फिर अपेंडिसाइटिस हो जाए। निकाल दिया तो अभी और भविष्य की भी संभावित परेशानी खत्म।
ऐसे में डॉक्टर इसे जल्द से जल्द निकाल देने की ही सलाह देते हैं क्योंकि शल्य क्रिया भी जटिल नहीं है। लेप्रोस्कोपिक विधि से भी यह निकाला जा सकता है।
मरीज को तुरंत राहत देने, संभावित जटिलताओं से बचने, आसान और सुरक्षित शल्य क्रिया होने और अपेंडिक्स का कोई फंक्शन नहीं होने से इसे निकाल देना ही ज्यादा सही समझा जाता है।
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