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चार आशीर्वाद की कहानियाँ

चार आशीर्वाद की कहानियाँ

एक शिकारी शिकार करने रहा था। उसे रास्ते में घोड़े पर सवार एक राजकुमार मिला। वह भी उसके साथ चल पड़ा। आगे उनको एक तपस्वी और एक साधु मिले। वे दोनों भी उनके साथ चल दिए। चारों आदमी जंगल में जा रहे थे। आगे उनको एक कुटिया दिखाई दी। उसमें एक बूढ़े बाबाजी बैठे थे।

चारों आदमी कुटिया के भीतर गए और बाबाजी को प्रणाम किया। बाबाजी ने उन चारों को चार आशीर्वाद दिए । बाबाजी ने राजकुमार से कहा- 'राजपुत्र! चिरंजीवी रहो!' तपस्वी से कहा- 'तुम मत जीओ।' साधु से कहा- "तुम चाहे जीओ, चाहे मरो, जैसी तुम्हारी मरजी!' शिकारी से कहा- 'तुम न जीओ, न मरो!' बाबाजी की बात सुनकर चारों बगलें झांकने लगे। उन्हें कुछ समझ नहीं आया। उन्होंने बाबाजी से इन आशीर्वादों का अर्थ

स्पष्ट करने को कहा। बाबाजी बोले- 'मनुष्य पहले तप करता है, तप के प्रभाव से राजा बनता है और फिर राजपाट संभालते हुए उसे कई पाप करने पड़ते हैं, 'तपेश्वरी सो राजेश्वरी, राजेश्वरी सो नरकेश्वरी!' इसलिए मैंने राजकुमार को सदा जीते रहने का आशीर्वाद दिया। तपस्या करने वाला जीता रहेगा तो तप करके शरीर को कष्ट देता रहेगा। वह मर जाएगा तो तपस्या के प्रभाव से स्वर्ग में जाएगा अथवा राजा बनेगा। इसलिए तपस्वी को मर जाने का आशीर्वाद दिया। साधु जिससे सुख पाएगा और मर जाएगा तो भगवान के पास जाएगा। वह जीता रहे तो भी आनन्द हैं, मर जाए तो भी आनन्द है। इसलिए मैंने उसको आशीर्वाद दिया कि तुम जीओ, चाहे मरो, तुम्हारी मरजी! शिकारी दिनभर जीवों को मारता है। वह जीएगा तो जीवों को मारेगा और मरेगा तो नरक में जाएगा। इसलिए मैंने कहा कि तुम न जीओ, न मरो!'

चारों को बाबाजी की कही बातों का मतलब समझ आ गया था।

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