-->
पुलवामा CRPF हमला: बुखार में भी कमांडर नसीर अहमद जाने से नहीं माने थे

पुलवामा CRPF हमला: बुखार में भी कमांडर नसीर अहमद जाने से नहीं माने थे


इमेज कॉपीी

जम्मू में राजौरी के थान्नामंदी तहसील के दोदासन बाला गाँव के रहने वाले नसीर अहमद अपना जन्मदिन मनाने के एक दिन बाद पुलवामा में हुए चरमपंथी हमले में मारे गए.


13 फ़रवरी को नसीर ने अपना 46वां जन्मदिन मनाया था.

नसीर अहमद सीआरपीएफ़ की 76वीं वाहिनी में थे. चरमपंथियों ने जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर सीआरपीएफ़ के काफ़िले की जिस बस को निशाना बनाया था, नसीर अहमद उसके कमांडर के तौर पर तैनात किए गए थे.

उस दिन नसीर की तबीयत ठीक नहीं थी, उन्हें बुखार था.

इमेज कॉपीरइट

उनके बड़े भाई ने फ़ोन पर उनसे लीव पर चले जाने के लिए भी कहा था ताकि वो थोड़ा आराम कर सकें. लेकिन नसीर ने अपने फ़र्ज़ को निभाना ठीक समझा और कश्मीर घाटी जाने के लिए हामी भर दी.


उन्हें क्या पता था यह सफ़र उनकी जिंदगी का आखिरी सफ़र साबित होने वाला था.

बच्चों को नहीं पता कि पिता नहीं रहे

नसीर अहमद के मारे जाने की ख़बर सुनकर उनके घर गाँववालों का आना लगातार जारी है.

राजौरी के इस छोटे गाँव ने चरमपंथियों के ख़िलाफ़ एक लंबी लड़ाई लड़ी है. गाँव के एक युवा ज़ाहिर अब्बास ने बताया चरमपंथ के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ते-लड़ते इस गाँव ने कम से कम 50 लोगों ने अभी तक क़ुर्बानी दी है.

इमेज कॉपीरइट नसीर अहमद के भाई 

22 साल से सीआरपीएफ़ में नौकरी कर रहे नसीर अपने परिवार के साथ जम्मू में ही रह रहे थे. उनके बच्चे जम्मू में ही स्कूल में पढ़ाई करते हैं.

नसीर की मौत के बाद शुक्रवार को उनकी पत्नी शाज़िया कौसर और बच्चे देर शाम तक गाँव नहीं पहुंचे थे. नसीर की बड़ी बेटी फलक और बेटे काशिफ़ इस बात से बेख़बर थे कि उनके पिता अब हमेशा के लिए चले गए.


नसीर अहमद के माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था. उनके बड़े भाई सिराजुद्दीन ने उनको पाल-पोस कर बड़ा किया था. वो ख़ुद एक पुलिसकर्मी हैं.

अपने भाई को याद करते हुए सिराजुद्दीन ने बीबीसी हिंदी से कहा, "वो अपनी नौकरी करते-करते देश के नाम शहीद हो गया. अपना फ़र्ज़ पूरा कर गया."

वो कहते हैं, "मैं नहीं चाहता था कि नसीर भी वर्दी वाली नौकरी करे. लेकिन शुरू से ही उसके अन्दर देशभक्ति की भावना थी और वो सेना में भर्ती हो गया. उसने मेरी एक नहीं सुनी."

सिराजुद्दीन ने कहा कि इतनी छोटी उम्र में भाई के चले जाने से उन सब पर बहुत ज़ुल्म हुआ है.

वो कहते हैं, "मैं अब अकेला हो गया हूं. उसके छोटे-छोटे दो बच्चे हैं. उन्हें अभी पढ़ाना है, पालना है. कैसे तय होगा इतना लंबा सफ़र.''

वो कहते है, "सरकार को हिम्मत दिखानी चाहिए ताकि फिर ऐसा हादसा न हो. लोगों के घरों में आग न लगे. जवानों को बचाना चाहिए."

उनका कहना है कि सेना का काफ़िला अपने रास्ते जा रहा था. उससे किसी को कोई लेना-देना नहीं था फिर भी अचानक हमला कर के कई लोगों को मार दिया गया.

इमेज कॉपीरइटAVINASH/BBC

'सरकार कोई ठोस क़दम उठाए'

सिराजुद्दीन कहते हैं, "मेरा भाई देश के लिए क़ुर्बान हो गया है. मेरी सरकार से बस इतनी अपील है की उनके बच्चों की मदद की जाए क्योंकि वो अभी बहुत छोटे हैं."

वहीं गाँव के एक बुज़़ुर्ग निसार राही ने बीबीसी हिंदी से कहा, "आए दिन हमारे देश के नौजवान शहीद हो रहे हैं इसलिए सरकार को चाहिए कि वो इस मसले का कोई ठोस हल निकाले."

उन्होंने कहा अगर अमन होगा तो ही बातचीत के हवाले से मसले का हल निकालने के लिए पहल होगी. वो कहते हैं कि शांति के लिए दोनों देशों की हुकूमतें एक साथ कदम उठाएं और अमन के रस्ते आगे बढें ताकि दोनों देशों के लोग अमन की ज़िन्दगी जिएं.

नसीर अहमद के घर जमा हुए रिश्तेदारों का कहना है कि देश की सरकार को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए ताकि हर रोज़ देश के नौजवान शहीद न हों और इस मसले का कुछ हल निकले.

0 Response to "पुलवामा CRPF हमला: बुखार में भी कमांडर नसीर अहमद जाने से नहीं माने थे"

Post a Comment

JOIN WHATSAPP GROUP

JOIN WHATSAPP GROUP
THE VOICE OF MP WHATSAPP GROUP

JOB ALERTS

JOB ALERTS
JOIN TELEGRAM GROUP

Slider Post