-->

CASH ON DELIVERY STORE ऑनलाइन शॉपिंग के लिए क्लिक करें

CASH ON DELIVERY STORE ऑनलाइन शॉपिंग के लिए क्लिक करें
FASHION OFFERS
ये हैं वे पांच मुस्लिम स्वतंत्रा सेनानी, आजादी की लड़ाई में जिनका योगदान महात्मा गांधी और नेहरु से कम नहीं

ये हैं वे पांच मुस्लिम स्वतंत्रा सेनानी, आजादी की लड़ाई में जिनका योगदान महात्मा गांधी और नेहरु से कम नहीं


नई दिल्ली – 15 अगस्त भारत के ऐतिहास सबसे महत्वपूर्ण तारिख हैं, आज ही के दिन भारत ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद होकर एक स्वतंत्र राज्य बना था। इस दिन को हम दिवस स्वन्त्रता दिवस के नाम से जानते हैं। भारत को ब्रिटिश हुकूमत आज़ादी दिलाने में अनगिनत स्वतंत्रा सेनानियो ने अपनी जान की क़ुरबानी दी।

हम देखते हैं कि जब भी स्वतंत्रा सेनानियो की बात आती हैं तो मुस्लिम स्वतंत्रा सेनानियो के नाम पर सिर्फ एक ही नाम सामने निकल कर आता हैं। और स्वतंत्रता संग्राम के मुस्लमान क्रांतकारियो को इतिहास के पन्नो से मिटा दिया गया हैं।

जब-कभी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की बात होती है तो मुस्लिम समुदय से सिर्फ एक ही नाम सामने अत हैं। जहाँ देखो वहीं दिखाई देता है। लेकिन उसके अलावा किसी का नाम नज़र नहीं आता हैं। उस नाम से आप भी अच्छी तरह वाकिफ हैं, जी हाँ वह और कोई नहीं ‘अशफ़ाक़ उल्लाह खान’ का नाम दिखाई देता हैं। तो मुद्दा यह हैं कि क्या सिर्फ अशफ़ाक़ उल्लाह खान भारत के स्वतंत्रा आंदोलन में शामिल थे।

इसके अलावा एक और नाम हैं मौलाना अबुल कलाम आज़ाद” जिसे देखकर हमने भी यही समझ लिया कि मुसलमानो में सिर्फ मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, अशफ़ाक़ उल्लाह खान के बाद दुसरे ऐसे मुस्लमान थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा थे जिन्होने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन मे हिस्सा लिया था।

बल्कि अगर अस्ल तारिख का गहन अध्यन किया जाये, तो आप देखेगे 1498 की शुरुआत से लेकर 1947 तक मुसलमानो ने विदेशी आक्रमणकारियो से जंग लड़ते हुए अपनी जानो को शहीद करते हुए सब कुछ क़ुरबान कर दिया।

इतिहास के पन्नों में अनगिनत मुस्लिम हस्तियों के नाम दबे पड़े हैं जिन्होने भारतीय स्वतंत्रा आंदोलन में अपने जीवन का बहुमूल्य योगदान दिया जिनका ज़िक्र भूले से भी हमें सुनने को नहीं मिलता हैं। जबकि अंग्रेजों के खिलाफ भारत के संघर्ष में मुस्लिम क्रांतिकारियों, कवियों और लेखकों का योगदान भुलाया नहीं जा सकता है।

फतवा राष्ट्रप्रेम का

मौलाना हुसैन अहमद मदनी (रह.) ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ फतवा दिया. कि अंग्रेजों की फौज में भर्ती होना हराम है। अंग्रेजी हुकुमत ने मौलाना के खिलाफ मुकदमा दायर किया. सुनवाई में अंग्रेज जज ने पूछा -” क्या आपने फतवा दिया है कि अंग्रेजी फ़ौज में भर्ती होना हराम है.?”

मौलाना ने जवाब दिया – ” हाँ फतवा दिया है.

और सुनो यही फतवा इस अदालत में अभी भी दे रहा हूं

और याद रखो…आगे भी जिंदगी भर यही फतवा देता रहूंगा..”””

जज ने कहा -” मौलाना ..इसका अंजाम जानते हो ..सख्त सज़ा होगी..।

मौलाना – ” फतवा देना मेरा काम…और सज़ा देना तेरा काम ..तू सज़ा दे…।

जज गुस्से में आ गया -” तो इसकी सज़ा फांसी है।

मौलाना मुस्कुराने लगे और झोले से कपडा निकाल कर मेज पर रख दिया….

जज ने कहा ये क्या है..?

मौलाना ने फरमाया- “ये कफ़न का कपडा है …मैं देवबंद से कफ़न साथ में लेकर आया था।”

” लेकिन कफन का कपडा तो यहाँ भी मिल जाता..”

” हाँ ..कफ़न का कपडा यहाँ मिल तो जाता.. लेकिन …

जिस अंग्रेज की सारी उम्र मुखालफत की..उसका कफ़न पहन के कब्र में जाना मेरे जमीर को गंवारा नहीं। ”

( फतवे और इस घटना के असर में ..हजारों लोग फौज की नौकरी छोड़ कर जंगे आज़ादी में शामिल हुए )

शाह अब्दुल अज़ीज़ रह. का अंग्रेज़ो के खिलाफ फतवा

1772 मे शाह अब्दुल अज़ीज़ रह ० ने अंग्रेज़ो के खिलाफ जेहाद का फतवा दे दिया ( हमारे देश का इतिहास 1857 की मंगल पांडे की क्रांति को आज़ादी की पहली क्रांति मन जाता हैं) जबकि सचाई यह है कि शाह अब्दुल अज़ीज़ रह ० 85 साल पहले आज़ादी की क्रांति की लो हिन्दुस्तानीयो के दिलों मे जला चुके थे। इस जेहाद के ज़रिये उन्होंने कहा के अंग्रेज़ो को देश से निकालो और आज़ादी हासिल करो।

यह फतवे का नतीजा था कि मुस्लमानो के अन्दर एक शऊर पैदा होना शुरू हो गया के अंग्रेज़ लोग फकत अपनी तिजारत ही नहीं चमकाना चाहते बल्कि अपनी तहज़ीब को भी यहां पर ठूसना चाहते है।

हैदर अली और टीपू सुल्तान की वीरता

हैदर अली और बाद में उनके बेटे टीपू सुल्तान ने ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी के प्रारम्भिक खतरे को समझा और उसका विरोध किया। टीपू सुल्तान भारत के इतिहास में एक ऐसा योद्धा भी था जिसकी दिमागी सूझबूझ और बहादुरी ने कई बार अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। अपनी वीरता के कारण ही वह ‘शेर-ए-मैसूर’ कहलाए।

अंग्रेजों से लोहा मनवाने वाले बादशाह टीपू सुल्तान ने ही देश में अंग्रेजो के ज़ुल्म और सितम के खिलाफ बिगुल बजाय था, और जान की बाज़ी लगा दी मगर अंग्रेजों से समझौता नहीं किया। टीपू अपनी आखिरी साँस तक अंग्रेजो से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। टीपू की बहादुरी को देखते हुए पूर्व राष्ट्रपति डॉ। एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें विश्व का सबसे पहला राकेट आविष्कारक बताया था।

बहादुर शाह ज़फ़र

बहादुर शाह ज़फ़र (1775-1862) भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह थे और उर्दू भाषा के माने हुए शायर थे। उन्होंने 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया। इस जंग में हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई।

1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है ब्रितानी शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। यह विद्रोह दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला। इस विद्रोह का आरंभ छावनी क्षेत्रों में छोटी झड़पों तथा आगजनी से हुआ था परन्तु जनवरी मास तक इसने एक बड़ा रुप ले लिया। विद्रोह का अन्त भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन की समाप्ति के साथ हुआ और पूरे भारत पर ब्रिटेनी ताज का प्रत्यक्ष शासन आरंभ हो गया जो अगले 10 वर्षों तक चला।

डॉक्टर मुख़्तार अहमद अंसारी

शुरुआती राजनीति में डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी पर मौलाना मुहम्मद अली का बहुत प्रभाव था यही कारण है उन्होने 1912-13 मे हुए बलकान युद्ध मे ख़िलाफ़त उस्मानिया के समर्थन मे रेड क्रिसेंट के बैनर तले मेडिकल टीम की नुमाईंदगी दिसम्बर 1912 में की थी जिसमे उनके साथ मौलाना मोहम्मद अली जौहर सहित दीगर कई लोग शामिल थे।

चूंकी मलेट्री मदद करने पर अंग्रेज़ो ने पाबंदी लगा दी थी, इस लिए डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी ने 25 डॉकटर की टीम बनाई और मर्द नर्स की एक टीम बनाई जिसमे उनकी मदद करने के लिए काफ़ी तादाद मे तालिब ए इल्म ने हिससा लिया। इसमे कुछ नौजवान काफ़ी रईस घरानो से तालुक रखते थे और इनमे अधिकतर इंगलैड मे ज़ेर ए तालीम थे। इस काम के लिए डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी को “तमग़ा ए उस्मानिया” से नवाज़ा गया था जो उस समय वहां का एक बड़ा अवार्ड था जो फ़ौजी कारनामो के लिए उस्मानी सल्तनत द्वारा दिया जाता था।

ये मिशन 7 माह तक चला और 10 जुलाई 1913 की शाम को दिल्ली स्टेशन पर 30000 से अधिक लोगो की भीड़ डॉ अंसारी, जौहर और उनके साथियों के स्वागत के लिए खड़ी थी, इन लोगों का जगह-जगह बहुत सम्मान हुआ।

रेड क्रिसेंट के बैनर तले डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी के ज़रिये किए गए काम के लिए उन्हे ख़िलाफ़त के ज़वाल बाद भी याद किया गया और उनके कारनामो का ज़िक्र ख़ुद मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने इक़बाल शैदाई को इंटरवयु देते वक़्त किया था और उसने हिन्दुस्तान का शुक्र भी अदा किया था।

ध्यान रहे हिन्दुस्तान मे रेड क्रॉस सोसाईटी 1920 मे वजुद मे आई जबके डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी ने उस्मानीया सल्तनत के समर्थन मे 1912 मे ही रेड क्रिसेंट सोसाईटी को अपनी सेवाएं देनी शुरी कर दी थी। इसी साल भारत के दौरे पर आये तुर्की के सदर रजब तय्यिब एरदोगान ने जामिया मीलिया इस्लामीया के द्वारा मिल़े डॉक्टरेट की उपाधि पर शुक्रीया अदा करते हुए डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी और मौलाना मुहम्मद अली जौहर के कारनामो को याद किया था।

0 Response to "ये हैं वे पांच मुस्लिम स्वतंत्रा सेनानी, आजादी की लड़ाई में जिनका योगदान महात्मा गांधी और नेहरु से कम नहीं"

Post a Comment

JOIN WHATSAPP GROUP

JOIN WHATSAPP GROUP
THE VOICE OF MP WHATSAPP GROUP

JOB ALERTS

JOB ALERTS
JOIN TELEGRAM GROUP

Slider Post