
लोकसभा चुनाव से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया के सिर सजेगा मध्यप्रदेश की सत्ता का ताज?
देश भर के सर्द मौसम में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद लोकसभा चुनावों की गरमागरम राजनीति शुरू हो गई है. जहां एक तरफ आम चुनाव को देखते हुए सभी सियासी दल सक्रीय हो गए हैं, वहीं बीजेपी इन चुनावों से पहले तीन हिन्दी भाषी राज्यों में मिली सबसे बुरी हार का कलंक अपने माथे से हटाने की पुरजोर कोशिश करेगी. भाजपा के पुराने तोड़-मरोड़ पर नजर रखने वाले कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मध्यप्रदेश (जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच सबसे कड़ी देखने को मिली) में अभी भी सियासत का सबसे बड़ा खेल खेला जाना बांकी है.
क्या होगा भाजपा का सबसे बड़ा बह्रमास्त्र
मध्यप्रदेश में कड़ी टक्कर के बावजूद कांग्रेस सरकार बनाने में तो कामयाब हो गई लेकिन इसी के साथ पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए जो उठापटक हुई, उसने भी सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया. जिस तरह राहुल गांधी मध्यप्रदेश के नए सीएम कमलनाथ और सीएम पद के सबसे बड़े उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच में फंसे हुए नजर आए, उसने पार्टी की अंदरूनी कलह की बात जगजाहिर कर दी. अब ऐसे में इन कयासों को कुछ ज्यादा ही हवा मिलने लगी है जो मध्यप्रदेश कांग्रेस को छह महीने के भीतर दोफांक होने की बात कहती है.
क्या हैं संभावनाएं!
जानकारों की मानें तो मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को सूबे के सबसे बड़े पद से अलग थलग रखना कांग्रेस के लिए गले में फंसी फांक की तरह हो सकता हैं. जिसे न अंदर निगलते बने न बाहर निकालते. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी इन परिस्थितिओं का फायदा उठा, हर हाल में मध्यप्रदेश की सत्ता में वापसी करना चाहेगी. लेकिन बीजेपी शिवराज सिंह चौहान पर दाव न खेलते हुए किसी दूसरे चेहरे को आगे बढ़ाना चाहेगी और इस सियासी दावपेंच में बीजेपी के लिए सबसे बड़े मददगार, एमपी कांग्रेस के गुमसुम लेकिन सबसे बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया साबित हो सकते हैं. मध्यप्रदेश की राजनीति पर तगड़ी पकड़ रखने वाले ट्रूपल डॉट कॉम के को-फाउंडर अतुल मलिकराम एक संभावना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि, “11 दिसंबर को चुनावी नतीजे आने के बाद से ही आज दिन तक ज्योतिरादित्य सिंधिया चुप्पी साधे बैठे हैं. जिस तरह से उन्हें एमपी की सियासत से दूर रखने की कोशिश की जा रही है, बीजेपी इसी मौके को भुनाने की कोशिश करेगी. भाजपा की मनसा होगी कि सिंधिया को भारतीय जनता पार्टी से आगे बढ़ा सीधे मध्यप्रदेश की सत्ता पर बैठा दिया जाए, क्योंकि सिंधिया को 32 से अधिक विधायकों का समर्थन तो हासिल है ही, साथ ही बागी विधायकों के आलावा सपा, बसपा व अन्य पार्टियों के विधायक भी उनके साथ ही जाना पसंद करेंगे. वहीं बीजेपी भी शिवराज को एक और मौका देकर उनके कद को पीएम मोदी के बराबर नहीं करना चाहती. अब ऐसे में उसके पास सिंधिया से बेहतर विकल्प निश्चित तौर पर नहीं होगा, जिन्हे कांग्रेस पार्टी में फ़िलहाल ज्यादा तवज्जो नहीं दी जा रही है. यदि ऐसा हुआ तो एक झटके में एमपी की सत्ता पर बीजेपी के रास्ते सिंधिया का राज होते देखा जाएगा”
अब मध्यप्रदेश की सत्ता आने वाले दिनों में क्या मोड़ लेगी वो तो वक्त ही बताएगा लेकिन एक बात तो तय है कि लोकसभा चुनावों से पहले राज्य में जो भी समीकरण बनेंगे वे हर मायने में बेहद दिलचस्प व बड़े उलटफेर की अगुआई करेंगे.
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