
कमलनाथ-दिग्विजय-सिंधिया: फिर खेमे में लौटी कांग्रेस, खुल गए मोर्चे!
THE VOICE OF MP
NEWS18 MADHYA PRADESH |DECEMBER 31, 2018
चुनाव के पहले एकजुटता को अपनी ताकत बताने वाली कांग्रेस अब गुटों और खेमें की लड़ाई में उलझ गई है. कमलनाथ और दिग्विजयसिंह एक तरफ तो सिंधिया दूसरे मोर्चे पर डटे हुए दिखाई दे रहे हैं
मध्य प्रदेश सरकार बनने से पहले कांग्रेस में जिस एकजुटता का ताना-बाना बुना गया था वह अब पूरी तरह से छिन्न-भिन्न होता दिखाई दे रहा है. मध्यप्रदेश में सरकार बना चुकी कांग्रेस को 2019 की बड़ी लड़ाई लड़ना है लेकिन उसके पहले ही एक-दूसरे को निपटाने के अपने पुराने दौर में पहुंच गई है.
सिंधिया दूसरे मोर्चे पर
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर कमलनाथ की घोषणा के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के साथ एक यादगार तस्वीर साझा करते हुए लियो टॉल्सटॉय के विख्यात कोट को लिखा था-दो सबसे शक्तिशाली योध्दा समय और धैर्य. लेकिन एक पखवाड़ा भी नहीं हुआ है जब मध्यप्रदेश कांग्रेस में यह मंत्र भुला दिया गया है. चुनाव के पहले एकजुटता को अपनी ताकत बताने वाली कांग्रेस अब गुटों और खेमें की लड़ाई में उलझ गई है. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह एक तरफ दिखाई दे रहे हैं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया दूसरे मोर्चे पर डटे हुए दिखाई दे रहे हैं.
कमलनाथ फ्री हैंड नहीं
कैबिनेट में विभागों के बंटवारे को लेकर हुई प्रेशर पॉलिटिक्स ने कांग्रेस के अंदरूनी हालातों की पोल खोल कर रख दी है. और उसने एक मैसेज दिया है कि कमलनाथ भले ही मुख्यमंत्री बनाए गए हैं लेकिन वे फ्री हैंड नहीं है. सिंधिया गुट के दबाव में वे अपने स्वयं के फैसले नहीं ले सकते.
सिंधिया से सुलह का एक ही रास्ता है, हर मामला राहुल के दरबार में सुलझाया जाए. शपथ के 72 घंटे तक वे अपना कैबिनेट गठन नहीं कर पाए. आखिर में लिस्ट राहुल गांधी के पास पहुंचती है. वे खुद दिल्ली रवाना होते हैं. जहां सिंधिया के साथ हुई मीटिंग्स के बाद कैबिनेट तय होती है.
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समन्वय बैठक
दिल्ली के निर्देश पर भोपाल में शनिवार को देर शाम समन्वय बैठक होती है. जिसमें प्रदेश के सभी बड़े दिग्विजयसिंह, सुरेश पचौरी, अजयसिंह, दीपक बावरिया आदि नेता शामिल होते हैं. लेकिन जिनके साथ सबसे ज्यादा समन्वय की जरूरत है वह ज्योतिरादित्य सिंधिया बैठक में नहीं आते हैं. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस बैठक में निर्देश देते हैं कि कोई भी विधायक, नेता पार्टी फोरम से बाहर अपनी बात नहीं करेगा.
स्पीकर बनाना है
विधानसभा का सत्र शुरू होने वाला है. जिसमे स्पीकर का चयन होना है. भाजपा अपनी पूरी ताकत झोंक रही है. जोड़- तोड़ से उसका स्पीकर बन जाए. इस माहौल में कांग्रेस के अलग-अलग गुटों से उठने वाले असंतोष ने माहौल में गरमी ला दी है. जिससे निपटना मुख्यमंत्री और कांग्रेस संगठन के लिए बड़ा मामला हो गया है. कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं.
भाजपा के पास 109. एक निर्दलीय विधायक को मंत्री पद देकर उसने 115 का आंकड़ा सीधा हासिल कर लिया है. सपा-बसपा तीन अन्य निर्दलीय विधायकों को मिलाकर कुल छह विधायक है. जिन पर नजर लगी हुई है. मामला राजनीतिक जोर-अजमाइश का है. भाजपा अंदरूनी रणनीति बनाकर शह- मात का खेल जमा रही है.
दबाव की राजनीति
इधर कांग्रेस 15 साल बाद प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में आई है और आते ही विवादों में उलझ गई है. जादुई आंकड़े से दो नंबर कम होने का असर यह है कि हर विधायक, गुट, निर्दलीय अपनी अपनी ताकत के लिए लड़ता दिखाई दे रहा है. शपथ के दौरान कांग्रेस नेता सुरेश पचौरी, अजयसिंह की गैर मौजूदगी मायने यह निकाले गए कि वे नाराज हैं. पिछले एक सप्ताह से सिंधिया और दिग्विजयसिंह गुट के विधायकों ने एक दूसरे के खिलाफ खुले तौर पर मोर्चे खोल दिए. जिसने साफ बता दिया है कि कांग्रेस में एकता और समन्वय बीते जमाने की बात है.
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